दोस्तों आज मैं एक कहानी लेकर आया हूँ जो समाज पर अभिशाप बना हुआ प्रथा "दहेज़ प्रथा " पर आधारित है.
"दहेज़ प्रथा हमारे समाज में एक अभिशाप है"
आज के जमाने में दहेज़ प्रथा हमारे समाज में सही मायने में एक अभिशाप ही है. इसे रोकने के बजाय कुछ लोग इसको फैशन के तरह लेते हैं , हर आदमी दहेज़ के पीछे ही भागते हैं. लोग अपने बच्चे(बेटे) को इसलिए पढ़ाते हैं ताकि आगे जाकर जब बेटा पढ़ लिखर कर इंजीनियर , डॉक्टर बन जायेगा तो शादी में दहेज़ के रूप में मोटा पैसा मिलेगा. आश्चर्य तो तब होता है की जो बेटा इतना पढ़ कर आया है वो भी इसका एक बार भी विरोध नहीं करता है , इसलिए सोचने वाली बात है की आखिर इसका विरोध आखिर करेगा कौन.
दोस्तों हमारे समाज में बहुत सी प्रथा पहले थी उसमें से बहुतों का अंत हो चूका है तो फिर यदि हमलोग चाहें तो ये प्रथा भी खत्म हो सकता है.
चलिए दोस्तों कहनी के तरफ चलते हैं.
दहेज प्रथा पर आधारित दिल को हिला देने वाली कहानी
मदनलाल(काल्पनिक नाम) एक गरीब किसान था , जो बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी ही जोर पाता था. मदनलाल की एक बेटी और दो बेटे है , बेटी बड़ी और दोनों बेटे छोटे थे. उनकी बेटी का नाम गीता थी. जब गीता गाँव के सरकारी विद्यालय से 8वीं पास कर गयी तो मदनलाल की मुश्किलें और बढ़ने लगी क्योंकि उसके पास गीता को आगे पढ़ाने के लिए पैसे नहीं थे. अंत में मदनलाल ने गीता की शादी कराने के लिए सोचने लगा.
मदनलाल गीता का रिश्ता लेकर पास के गाँव के रमेश के पास गया क्योंकि की रमेश को एक बेटा था. रमेश अपने बेटे से गीता की शादी कराने के लिए मान ही गया था. इतने में मदनलाल ने कह दिया की उसके पास दहेज़ के रूप में देने के लिए कुछ भी नहीं है , ये बात सुनते ही रमेश ने रिश्ता करने से मना कर दिया. मदनलाल बहुत ही दुखी मन से घर वापस आ गया.
जब मदनलाल घर आया तो सभी खुश थे ये सोच के की रिश्ता हो गया है , लेकिन सभी सचाई से अंजान थे. जब रात हुई तो मदनलाल अपनी पत्नी(गायत्री) इसके बारे में बता रहा रहा था गायत्री जान कर बहुत दुखी हो गयी और रोने लगी. लेकिन वो ये नहीं जानती थी की गीता छुप कर सब बातें सुन रही है. गीता के दिल अपनी माँ को रोते देख बहुत ही ज्यादा दुःख हुआ और वो रात भर अपने आप को बेटी होने के कारण कोश्ती रही. जब सुबह हुआ तो उसने जहर खा ली और दुनिया को विदा कह गयी.
कब दोस्तों कबतक गीता जैसी बेटी दहेज़ प्रथा के नाम पर आत्महत्या करती रहेगी. आखिर हमलोग जागरूक कब होंगे . इसको खत्म करने के लिए हम सब को एक साथ होना ही पड़ेगा.
यदि आपको यह कहानी पसंद आई है तो इसे अभी शेयर करें ताकि हमलोग दहेज़ प्रथा को जड़ से खत्म कर सकें.
नोटिस :- दोतों यह कहानी काल्पिनक है इसके किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबध नहीं है.
लेकिन इस कहानी में सच्चाई जरुर है. तो आयें हमलोग साथ मिलकर दहेज़ प्रथा को खत्म करें.
"जय हिन्द , जय भारत "